मनोरंजक कथाएँ >> भुलक्कड़ बिन्नी भुलक्कड़ बिन्नीमनोहर वर्मा
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इसमें तीन बाल कहानियों का उल्लेख किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भुलक्कड़ बिन्नी
सवेरे की ठण्डी हवा चल रही थी। फूल-पत्ते, पेड़-पौधे सब झूम रहे थे।
चिड़ियाँ चहक रही थीं। मन्दिरों में सुबह की आरती शुरू हुई। घण्टों और
नगाड़ों की आवाज सुन बिन्नी खरगोश की आँख खुल गई। वह अँगड़ाई लेता हुआ उठ
बैठा। बिन्नी के कमरे की सब खिड़कियाँ खुली हुई थीं। उगते सूरज को देख
बिन्नी ने नमस्कार किया
आज बिन्नी बड़ा खुश था। न जाने क्यों उसे आज और दिनों से अधिक खुशी-सी महसूस हो रही थी। बिन्नी खिड़की से झाँककर बाहर के सुन्दर दृश्य को देखते हुए सोचने लगा—‘आज मेरे मन में इतनी खुशी क्यों छा रही है ? आज का दिन भी कितना सुन्दर है। जरूर कोई खास बात है आज !’
दातुन करते-करते भी बिन्नी यही सोच रहा था। सोचते-सोचते ही उसने अपने-आप से प्रश्न किया—‘कहीं स्वतन्त्रता दिवस तो नहीं है आज ? कैलेण्डर में देखना चाहिए।’ और बिन्नी ने कैलेण्डर देखा। स्वतन्त्रता-दिवस तो पन्द्रह अगस्त को आता है। तो फिर आज क्या है ?’ बिन्नी को इस प्रश्न ने उलझन में डाल दिया।
यहाँ तक कि बिन्नी नहाते समय भी सोचता रहा। सोचते-सोचते उसे ध्यान आया—‘आज दीवाली होगी।’ फिर अपने आप से उसने कहा ‘बाहर निकलकर देखूँ, कहीं बच्चे पटाखे चला रहे हैं क्या ?’’ बिन्न्नी केवल तौलिया लपेटे, बनियान पहने ही घर से बाहर निकल कर देखने लगा। न तो कहीं पटाखे ही चल रहे थे,
न घर और दुकानें ही सज रही थीं। ‘तब तो दीवाली भी नहीं है आज।’ बिन्नी ने मन-ही-मन निराश होते हुए कहा—‘तब फिर क्या हो सकता है ?’ अब तो यह प्रश्न बिन्नी को और भी अधिक परेशान करने लगा। बहुत दिमाग लगाया, खूब सोचा। पर बिन्नी को याद नहीं आया कि आज क्या हो सकता है।
आज बिन्नी बड़ा खुश था। न जाने क्यों उसे आज और दिनों से अधिक खुशी-सी महसूस हो रही थी। बिन्नी खिड़की से झाँककर बाहर के सुन्दर दृश्य को देखते हुए सोचने लगा—‘आज मेरे मन में इतनी खुशी क्यों छा रही है ? आज का दिन भी कितना सुन्दर है। जरूर कोई खास बात है आज !’
दातुन करते-करते भी बिन्नी यही सोच रहा था। सोचते-सोचते ही उसने अपने-आप से प्रश्न किया—‘कहीं स्वतन्त्रता दिवस तो नहीं है आज ? कैलेण्डर में देखना चाहिए।’ और बिन्नी ने कैलेण्डर देखा। स्वतन्त्रता-दिवस तो पन्द्रह अगस्त को आता है। तो फिर आज क्या है ?’ बिन्नी को इस प्रश्न ने उलझन में डाल दिया।
यहाँ तक कि बिन्नी नहाते समय भी सोचता रहा। सोचते-सोचते उसे ध्यान आया—‘आज दीवाली होगी।’ फिर अपने आप से उसने कहा ‘बाहर निकलकर देखूँ, कहीं बच्चे पटाखे चला रहे हैं क्या ?’’ बिन्न्नी केवल तौलिया लपेटे, बनियान पहने ही घर से बाहर निकल कर देखने लगा। न तो कहीं पटाखे ही चल रहे थे,
न घर और दुकानें ही सज रही थीं। ‘तब तो दीवाली भी नहीं है आज।’ बिन्नी ने मन-ही-मन निराश होते हुए कहा—‘तब फिर क्या हो सकता है ?’ अब तो यह प्रश्न बिन्नी को और भी अधिक परेशान करने लगा। बहुत दिमाग लगाया, खूब सोचा। पर बिन्नी को याद नहीं आया कि आज क्या हो सकता है।
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